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धरती माँ तेरी ममता,तार तार हो रही.........

धरती माँ तेरी ममता, तार तार हो रही......... धरती माँ तेरी ममता, तार तार हो रही। रोज रोज इंसानियत यहाँ, शर्मसार हो रही। अपने ही घर में अपनों से, डर रहा है बचपन। मासूमियत भी अब तो, जार जार हो रही। रोज रोज इंसानियत यहाँ शर्मसार हो रही। जिस मासूम सी परी को, फूल सा देखा था। उसे खून में लतपथ देख, रूह भी कराह रही। रोज रोज इंसानियत यहाँ शर्मसार हो रही। ए खुदा इन्सान बनाया तूने, पूजनीय था। उसपे तो बस अब, हैवानियत सवार हो रही। धरती माँ तेरी ममता, तार तार हो रही। रोज रोज इंसानियत यहाँ, शर्मसार हो रही।                                                                                                                       शोभना व्यास (सोहा)

रास्तो से मंजिल की और......

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मैं तो हर चेहरे पर खुशिया छोड़ जाऊँगा    मैं तो हर चेहरे पर खुशिया छोड़ जाऊँगा, अब जो निकल ही गया हूँ तो दूर तलक जाऊंगा। अपनी आँखों मे लिए इन ख्वाबों को मेरे, धरती आसमा के सफ़े मंज़िल तक पहुच जाऊँगा। मुझे कभी भुलाने की तक़रीर न करना, हर शख्स के दिल मे छाप छोड़ जाऊंगा। आसमा को भी कर दे रोशन कुछ ऐसा कर "सोहा" मैं हर दिए कि रोशनी बन जाऊंगा। अब जो निकला हूँ तो दूर तलक जाऊंगा। शोभना व्यास "सोहा " शब्दावली  :-  तक़रीर -कोशिश  सफे-रास्ते

पीहर

पीहर मन हर्षो उल्लास से भर लेती है , जब कोई लड़की पीहर को चलती है। कुछ दिनों की बेपरवाही को जीने , जिंदगी में खुशियो की ऊर्जा भरने निकल पड़ती है। जब कोई लड़की ...... न रात को सोने की फिकर , न सुबह जागने की परवाह करती है। जब कोई लड़की ........ यु हो जाता है दिल कुछ बचपन सा , पापा से जिद , माँ से फरमाइश किया करती है। जब कोई लड़की ………. ये सोच के की जाना है अपने आँगन , पिया को याद कर मुस्कुराती है , फिर आना है गर्मी की छुटियों में ये सोच कर इठलाया करती है। जब कोई लड़की पीहर को चलती है।।              लेखक     शोभना व्यास (सोहा )

माँ

"क्या सीरत क्या सूरत है वो तो ममता की मूरत है पाँव छुए और काम हो गया माँ खुद में शुभ  मुहूर्त है!" Happy Mother's Day माँ पर कुछ लिख पाना सम्भव नहीं है,लेकिन अपनी भावनाओ को चंद पंक्तियों में बया करने की कोशिश की है।........  "माँ " में कैसे कहु माँ क्या होती है,           ईश्वर  का ही कोई रूप माँ होती है।                      मेरे आँसुओ को जो आँचल से पोछ देती है,                                    मेरी तुतलाती जुबा के हर शब्द को माँ थाम लेती है ।                                                                           में कैसे कहु माँ क्या होती है.......                               मेरी चिंताओ को जो पल भर में दूर कर देती है,                                माँ अपनी गोद में बीठा हर प्रश्न हल कर देती है।                                                                            में कैसे कहु माँ क्या होती है.......                               नन्हे बढ़ते मेरे कदमो को गिरने पे थाम लेती है            रात के अँधेरे मेरे पास

बात सोच की है

Hello Friends,                        में सोहा आज आपके लिए कविता नहीं,अपने द्वारा रचित  एक छोटी सी रचना को आप लोगो से बांटना चाहती हु,इसी उम्मीद  के साथ की मेरी कविताओ की तरह मेरी रचना भी आपको  पसंद आये........ बात सोच की है  एक बार की बात है हम बस स्टॉप पर अपनी बस का इंतजार कर रहे थे वहा एक कार आकर रुकी कार चालक एक महिला थी जो कार से कुछ सामान लेने उतरी थी ,हम ने देखा कार में पीछे की सीट पर एक बुजुर्ग दम्पती  बैठे थे,कुछ देर के बाद हमसे रहा  नहीं गया हमने उनसे बात करना चाही ,हमने नमस्कार किया ,दम्पति ने भी अभिवादान किया ,अच्छे लोग प्रतीत हो रहे थे ,हमारे बीच कुछ क्षण बात हुई,हमने कहा आपने अपनी बेटी को बहुत अच्छी  सिख दी है उसे अपने कार्य के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं रहना होगा।महानुभाव ने कहा ये हमारी बेटी नहीं बहु है जनाब ,हम उसे अपनी बेटी के जैसा ही मानते  है।  ये सुन हमारा मन बहुत खुश हुआ महिलाओ को यु बराबरी  मान सम्मान मिलते देख हमें बड़ी खुशी होती है ,और जब महिला एक बहु हो तो और ज्यादा ही। हमारे द्वारा की गई तारीफ़ से  महानुभाव के चेहरे पर भी ख़ुशी थी।  कुछ क्षण विचार के बाद

याद

याद  याद आ रही है आज उनकी बहुत , उनको भी आ रही होगी याद हमारी बहुत। ये मौसम ही कुछ मदहोश कर रहा है,     इस बारिश में आज भीगने को जी कर रहा है। ये ठंडी हवाए जुल्फों को मेरी उड़ाए, नजरे बस उनको ही ढूंढना चाहे। बिन गीत और साज के ये पायल क्यों  दे झंकार चुडियो की खन खन क्यों उनका ही नाम ले। जो हाल इस दिल का है वो हाल उनका भी होगा, सपना कोई नया आखो में उनकी भी सज रहा होगा। Shobhna Vyas (सोहा)
एहसास जुबा से कम ही काम लेता हूँ।                             नजर आते ही उनको नजरो से बाँध लेता हूँ। फिर शुरू होती है    आँखो ही आँखो में                                                                      अनकही बाते । कुछ कहूँ या न कहूँ , ये सोचकर दिल थाम लेता हूँ। यु   अचानक   नजरे   झुकाकर   तोड़ दी बे जुबा बातो की लड़ी। पलकों को गिराकर   फिर उठाना   बिना कुछ कहे सबकुछ कह जाना। पलकों को मूँद कर , अनकहे होठो को विराम देता हूँ। Shobhna vyas(Soha)
दोस्तों लो आज फिर नया अफ़साना ले आए,अपनी कलम से आज दर्द का फ़साना लिख लाये………….. दर्द यु न देखो मुझे की में टुट जाऊंगा , आज जो बिखरा तो फिर सिमट न पाउँगा । कहने को तो साथ चलती हे ये हवाए भी , पर इस राह पर तो साया भी साथ छोड़ जायेगा । क्या पाया हमने और क्या खो दिया कोई न समज़ पायेगा , टुटा है दिल ऐसे की फिर जुड़ न पायेगा। पूछते हो दिल का हाल मेरे, में कैसे ये बतलाऊंगा , दर्द देकर भी अनजान है जो में, उनका नाम कैसे कह   पाउँगा।                                                                                                                                       Shobhna vyas(Soha)