धरती माँ तेरी ममता,तार तार हो रही.........
धरती माँ तेरी ममता,
तार तार हो रही.........
धरती माँ तेरी ममता,
तार तार हो रही।
रोज रोज इंसानियत यहाँ,
शर्मसार हो रही।
अपने ही घर में अपनों से,
डर रहा है बचपन।
मासूमियत भी अब तो,
जार जार हो रही।
रोज रोज इंसानियत यहाँ शर्मसार हो रही।
जिस मासूम सी परी को,
फूल सा देखा था।
उसे खून में लतपथ देख,
रूह भी कराह रही।
रोज रोज इंसानियत यहाँ शर्मसार हो रही।
ए खुदा इन्सान बनाया तूने,
पूजनीय था।
उसपे तो बस अब,
हैवानियत सवार हो रही।
धरती माँ तेरी ममता,
तार तार हो रही।
रोज रोज इंसानियत यहाँ,
शर्मसार हो रही।
शोभना व्यास (सोहा)
Right for this situation
ReplyDeleteNice alfaj....burning issue and very shameful for society.
ReplyDeleteNice poem👌
ReplyDeleteThe truth... Amazingly crafted!
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