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धरती माँ तेरी ममता,तार तार हो रही.........

धरती माँ तेरी ममता, तार तार हो रही......... धरती माँ तेरी ममता, तार तार हो रही। रोज रोज इंसानियत यहाँ, शर्मसार हो रही। अपने ही घर में अपनों से, डर रहा है बचपन। मासूमियत भी अब तो, जार जार हो रही। रोज रोज इंसानियत यहाँ शर्मसार हो रही। जिस मासूम सी परी को, फूल सा देखा था। उसे खून में लतपथ देख, रूह भी कराह रही। रोज रोज इंसानियत यहाँ शर्मसार हो रही। ए खुदा इन्सान बनाया तूने, पूजनीय था। उसपे तो बस अब, हैवानियत सवार हो रही। धरती माँ तेरी ममता, तार तार हो रही। रोज रोज इंसानियत यहाँ, शर्मसार हो रही।                                                                                                                       शोभना व्यास (सोहा)

रास्तो से मंजिल की और......

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मैं तो हर चेहरे पर खुशिया छोड़ जाऊँगा    मैं तो हर चेहरे पर खुशिया छोड़ जाऊँगा, अब जो निकल ही गया हूँ तो दूर तलक जाऊंगा। अपनी आँखों मे लिए इन ख्वाबों को मेरे, धरती आसमा के सफ़े मंज़िल तक पहुच जाऊँगा। मुझे कभी भुलाने की तक़रीर न करना, हर शख्स के दिल मे छाप छोड़ जाऊंगा। आसमा को भी कर दे रोशन कुछ ऐसा कर "सोहा" मैं हर दिए कि रोशनी बन जाऊंगा। अब जो निकला हूँ तो दूर तलक जाऊंगा। शोभना व्यास "सोहा " शब्दावली  :-  तक़रीर -कोशिश  सफे-रास्ते