BACHPAN मन चंचल और रूप है प्यारा, बचपन का हर अंदाज निराला । मन में छुपी कई शैतानी, बंद मुठी से पकडे पानी । दिल में रखते अरमान कई , आसमान को छुने के। धरती पर तारो को लाके , उनके साथ है खेलने के । ना कोई चिंता ना है फिकर, मन पतंग सा उड़ता बेखबर । कितनी उमंगे कितना है काम, फिर भी हर कोई कहता है नादान। नई सुबह फिर नए है सपने, बचपन का बस यही है काम। SHOBHNA VYAS
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