कृष्ण-रुक्मणी संवाद (Covid-19)

Hello Friends,
 बहुत लंबा टाइम हो गया मुझे आप लोगों के लिए कुछ नया लिखे हुए,उसके लिए माफी चाहूंगी मगर अब इंतजार की घड़ी समाप्त हुई है,इस बार जब आप से रूबरू हो रही हूं तो यह वादा है मेरा कि अब आपको लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा जल्दी से जल्दी मेरे द्वारा रचित नई नई रचनाएं आपको मिलेगी,तो दोस्तों इस बार में आप लोगों के लिए कविताओं से हटके मैंने एक छोटा सा व्यंगय लिखा है कोविंड19 के ऊपर जो आप लोगों के साथ साझा करना चाहती हूं शायद आप लोगों को पसंद आए. Thank you
कृष्ण रुक्मणी संवाद-
रुकमणी- हे नाथ ऐसी भयावह परिस्थिति का क्या कारण हो सकता है चारों और भूखमरी और मृत्यु का भय कैसा है.
कृष्ण- हे प्रिय तुम किस विकट परिस्थिति की बात कर रही हो मेरी नजर से तो बहुत ही आनंदमई और सुख में मनुष्य का जीवन प्रतीत हो रहा है.

रुकमणी- हे लीलाधर आप की लीला को तो स्वयं ब्रह्मा भी नहीं जान सकते तो फिर मैं अज्ञानी! आपकी इस मनोहर मुस्कान के पीछे छिपी बातों के केवल आप ही जान सकते हैं मेरा भी मार्गदर्शन करें स्वामी.

कृष्ण- हे प्रिये!, इंसान अपने कर्तव्य पथ से विमुख हो गया है वह खुद को ही भुला बैठा है, मेरी बनाई हुई इतनी सुंदर प्रकृति का अनुचित दोहन, दिन पर दिन धरती पर बढ़ते हुए पाप, एक मासूम सी कली जो बहुत ही सुंदर मेरे द्वारा बनाई गई रचना उसे तोड़ दिया गया मसल दिया गया, इंसानों के पास खुद के लिए वक्त नहीं अपनों के लिए वक्त नहीं चारों और अनैतिक वातावरण. हे प्रिय यह होती है भयावह परिस्थितियां जो तुम देख रही हो वह तो बहुत ही आनंदमय और सुखमय जीवन है.

रुकमणी- हे नाथ हर परिस्थितियां आपके अनुकूल(प्रतिकूल) होती है मुझे तो इस भयावह महामारी के बारे में बताएं...

कृष्ण- प्रिये इंसान ने स्वयं ही अपने लिए इन परिस्थितियों को चुना है..
रुकमणी- हे मधुसूदन तो क्या यह उनके द्वारा किए गए पापों की सजा है!

कृष्ण- (मुस्कुराते हुए) नहीं प्रिय यह तो बस उनको मेरे द्वारा दिखाया गया एक सदमार्ग है जो उन्हें प्रेम भक्ति अपनापन साथ और कर्तव्य पथ पर बढ़ना सिखाएगा. तब इंसान स्वयं ही इस महामारी से लड़ने के लिए तैयार हो जाएगा. और तब एक सुंदर मनमोहक संसार का आवरण होगा...

 शोभना व्यास (सोहा)

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